Tuesday, April 21, 2009


सन्दीप कंवल


फैशन का जमाना छोरो, करर्‌या कती हंगाई।
बेरा भी पाटै कोन्या, माणस सै क लुगाई॥
छोरे-छोरी कट्ठे जाकै, बदलमा कंटिग करावै सै,
लाण्डे कुड़ते पहरे दोनूं, टाइट जिन्स फंसावै सै,
जमाने की इस चाल तै हामनै पाछै नै धिकावैं सै,
रिफल-रिफल चालैं गाला म्हं, लोगां नै हंसाव सै,
हेयर ड्र्‌ैसर बण भकावैं सैं, आजकाल कै नाई।
बेरा भी पाटता कोना, माणस सै के लुगाई॥
70 साल की बुढ़िया होरी, अन्टी कुवावण लागी,
बुढापे के म्हं भी वा , सुरखी,पोडर लावण लागी,
माथे उपर फैन्सी टीका, रजकै सजावण लागी,
रलदू की मां भी छोरो, ब्यूटी पार्लर चलावण लागी,
द्यौली भी बणावण लागी, वा ताई भरपाई।
बेरा भी पाटै कोन्या, माणस सै कै लुगाई॥
रै फैशन तेरा बीज मरियो, गोरा काला होरा सै,
पेट उगाड़ा सुण्डी दिखै, मोटा चाला होरा सै,
60 साल का बूढे+ का, सिर काला होरा सै,
फोन पै बतलाव दादी, जान का गाला होरा सै,
सबका राम रूखाला होरा सै, आच्छी रौनक आई।ं
बेरा भी पाटता कोना, माणस सै क लुगाई॥
टवेंटी-टवेंटी का खेल चालरा, गिंडी चकरी काटगी,
छक्का मारा छोरै नै, तलै तै पैंट पाटगी,
यू भूंडी सुंडी छोरी भी कसूती रंग छाटगी,
सैन्टरफ्रैस टॉफी नै भी वा आंगलिया गैल चाटगी,
सारा जणै नैं आंटगी, या फैषन की करड़ाई।
बेरा भी पाटता कोना, माणस सै क लुगाई॥
कूण म्हं पड़ा बूढ़ा रोवै, देवैं पाणी का गलास नहीं,
अपणे बणे पराये लोगों इब किसे तै आस नहीं,
टूटण लागी डोर प्यार की, लागै कुछ भी खास नहीं,
रिसता पै कालख पूतगी, रह्‌या किते विस्वास नहीं,
बेटा बाप नै आंख दिखावै, दुष्मन बणगी मां जाई।
बेरा भी पाटता कोना, माणस सै क लुगाई॥

फैसन की इस आंधी म्हं, भूलगे घूंघट गाती,
उंच नीच के काम करण म्हं सरम कती न आती
काण कायदा तोड़या सारा, तोड़े सारी रीति रिवाज,
दिखावा की इस भीड़ म्हं लोगो, संस्कृति की दबी आवाज,
भुरटाणे आला कहवै आज, छोड़ो या बुराई॥
बेरा भी पाटता कोना, माणस सै क लुगाई॥

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