Thursday, September 8, 2011

बाबु ओ बाबु यो सिरसा मन्नै खूब भाया

Sandeep Kanwal Bhurtana
सारे दोस्तां इस कविता पै कांमेंट जरूर करणा सै,,,,या कविता सै मेरे दोस्त भाई रमेश चहल फकड जाट की,
मेरे पै कविता लिखी थी भाई नै आज टेम मिला तो मन्नै भी चार लेन लिखी सै, जिसी इक लागै उसा भाव
दे दिया ़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़ ़ ़ ़ ़ ़ संदीप कंवल भुरटाना



यूनिस्टी म्हं एक फकड जाट पाया

लागै जणु खुरा था
रंग उसका भूरा था
गुद्दी निचै नै करके, धरती नै देखके चालै था
छः फुटा द्यींग नै देखके कालजा सबका हालै था
धरती नै क्यंू देख था, यो सवाल मेरे मन म्हं घालै था
किसान का बेटा था दोस्तो, उस पवित्र मां नै संभालै था

मेरे गेल्यां 5 मिनट तई बडा हांस हांस बतलाया
सरसा शहर म्हं मन्नै एक फकड जाट पाया

नाम रमेश चहल सै उसका, बेटा बलवन्त किसान का
सच कहूं अखबार चलाया करै, छोरा हरिपुरा गाम का
हरियाणवी संस्कृति उपर ठाण नै बीडा उसनै ठा राख्या सै
कदे भी पिटारा खुल सकै सै , बणा राख्या पूूरा खाका सै

लख्मी रो पडा नाटक म्हं उसनै खूब म् रूवाया
यूनिस्टी म्हं एक फकड जाट पाया

यारा का यार सै वो
कसूता होशियार से वो
नाना का रूम पै उसके तोडी से कई खाट
फिल्म देखण जाया करदे बज जांदे चही आठ
मन का मौजी सै वो इब फेसबुक पै छाया
बाबु ओ बाबु मन्नै एक एंडी जाट पाया

स्कीट, नाटक, चुटकले बनाण म्हं घणा कसूता हाई सै
मन्नै नूं लागै सै दोस्तो, वो मेहर सिहं की परछाई सै
लख्मी रो पडा नाटक म्हं भी, रस रागनियां का चाख्या सै
कुरूक्षेत्र यूनिस्टी म्हं भी पोजीसनां का धूमा पाड राख्या सै

के यू के म्हं पाटोडा गलै तै उसनै सुर म्हं गाणा गाया
यूनिस्टी म्हं एक फकड जाट पाया

संस्कृति उपर लिखा करै वा सुथरे सुथरे गीत
कदे नहीं घबराया वो चहीं हार हो या जीत
उसकी कविता सुणके तो आदमी कै आंसु आज्यां
जिसनै दुख देख्या ना हो वो भी गसी खाज्या

कदे कदे स्टेज भरी म्हं मेरे यार नै ठूमका लाया
यूनिस्टी म्हं एक फकड जाट ठाया

सिरसा तै केयूके जांदी हाणी ढाकल गाम आवै सै
ओड म्हारे यार कुंडु के घरा लासी की टंकी पावै सै
यो फकड राम ओडे भी सारी रोटी बाजरा की खाग्या
टिंडी का घी भाइयो चटणी गेल्या ब्होत ए घणा खाग्या
सारी लासी की टंकी रितागा, बोतल लेज्यांदा ठाया
अर ताम ए बतादो अक मन्नै फकड जाट नहीं पाया
यूनिस्टी म्हं एक फकड जाट पाया


पेपरा पाछै हाम दोनूं यूपी अर शिमला घूम के आये
उस फकड नै ओडे भी हाम हरियाणवी कुवाहे
गाजियाबाद म्हं डाकी नै रिक्सा आला पाछै बिठाया
आप बैठया गददी पै, अंगोछा गल म्हं बगाया
गोबर की मांद म्हं रिक्शा बाड दी, नाली म्हं पडा पाया
लाकै पाणी लिफाफा म्हं मन्नै, बडी मुश्कल तै धुवाया
वा रै अजय कवि तन्नै यो फकड जाट मिलाया
यूनिस्टी म्हं एक फकड जाट पाया

मेरे उपर कविता लिखकै राजी घणा होरया सै
मेरा यार मेरा गुरू सै यो सन्दीप तन्नै टोरया सै
कदे तो बता दिया कर फकड तू कित खोरया सै,
लाम्बा लाम्बा ठाडा ठाडा तू टाली का पोरा सै

तू फेसबुक पै कै लिखै से भुरटाणा टोहया भी ना पाया
ले भाईयों आपां नै नहला पै दहला मार बगाया
दसेक दिन ओर रूकज्या, मैं यूं आया
यूनिस्टी म्हं एक फकड जाट पाया
बाबु ओ बाबु यो सिरसा मन्नै खूब भाया
यूनिस्टी म्हं एक फकड जाट पाया

संदीप कंवल भुरटाना

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