Saturday, February 25, 2012

भाईयो के के खोग्या अर के के खोग्या मेरी देखम देख म्हं घणी मस्त कविता सै,,पढियों रै भाईयो गादड बिल्ली का डर का बिठाइयो

के के खोग्या,, अर के के होग्या मेरी देखमदेख म्हं,,
उन टेमां म्हं नानी अर् माॅं कहाणी ब्होत सुणाया करदी,,
जै बालक कोए रोण लागज्या हाउ कहकै डराया करदी,,
भूत-भूतणी , कुता-बिल्ली, मिण्डक की बात करया करदे,,
गादड़ का इसा भय बैठा हाम बड़े होके भी डरया करदे,,
बामण न नाम धरया षेर सिंह, पर डर लागै उस गादड़ तै,,
जै मिलज्या किसे रात एकला, कोण निपटै उस खागड़ तै,,
फेर एक दिन इसा चाला होया, पोली म्ह थी खाट पड़ी,,
थका पड्या था उसपे सोग्या, आधी रात नै लगी झड़ी,,
बादल गरजै बिजली चमकै पेट म्हं मरोड़ा लाग्या,,
गुदड़े खाट भरण का डर था गादड़ का डर थोड़ा लाग्या,,
फेर भी गादड़ तै डरदै नै थोड़ी देर तै करी हंगाई,,
ल्गा हुमाया टुटया नहीं करदा,, फेर डरदे नै जेली ठाई,
देखी जागी जो होगा, फेर दो खडंका की आंटी लाई,,
जै नट बोल्ट का सिस्टम होदंा जरूर चूड़ी कस लेदंा भाई,,
गादड़ तै इसा डरया ष्षेर सिंह गुद्दी के बाल खडे होग्ये,,
ज्यूं-ज्यूं दबी पडै गात पै, गादड़ और भी बडे़ होग्ये,,
फेर भी भाज्या दोड़ी करकै न सारी गली नै करग्य पार,,
फलषे के म्हं परस कै धोरे षेर सिंह न मानी हार,,
गली कै बीच म्हं आंख मिचके उसनै दंगल डाट दिया,,
मां के बिठाए भय कै कारण शेर सिंह ने जस काट दिया,,
उसकै पेट म्ह चैन सा होग्या,
बिना हाथ धुवाए ए सोग्या,,
कोण डूब गया बिना पाणी रै
सारा गाम कट्ठा होग्या,
षेर सिंह की घरआली सबेरे जोहण तै पाणी ल्याई,
उसनै आके घड़ा तार कै,, खरीखोटी चार सुणाई
वो बोल्या -
सुण स्याणी तन्नै बताउं, तेरा मेरा किसने बांटया सै,,
जिकर घणा तै करीया ना, यो जस मनै ए काट्या सै,,
आखर म्ह तारतै एक बात कहूंगा’-
गादड बिल्ली, का भय ना बिठाइयो, बालक हो चाहे पेट म्हं,,
के के खोग्या,, अर के के होग्या मेरी देखमदेख म्हं,,

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