Thursday, December 20, 2012

मस्त जवानी छोरां की, नशा म्हं छोरे खुरे।

स्ंादीप कंवल भुरटाना

मस्त जवानी छोरां की, नशा म्हं छोरे खुरे।

काॅलेज, कैंपस के दिनां म्हं, होज्यंा इसतराले पूरे।।

छोरी नअ् इसारै म्हं, एकदम आंख घुमाई,

बाहरनअ् आकै देखा तो, कैन्टीन म्हं बैठी पाई,

दो-चार बात मारी उसतै, फेर चा भी पियाई,

सण्डे आला् दिन फिल्म दिखाण की, हां भी भरवाई,

जी आया नूं फिल्म म्हं, सरदार बांधरे तुरे।

काॅलेज, कैंपस के दिनां म्हं, होज्या इसतराले पूरे।।


छोरा का तो कै कहणा, मोटरसाइ्रकल पै आवैं रै,

एक समोसा, दो पेटीज खुवाके, कुटिया म्हं घुमावैं रै,

एक आधी बार भुंडी बणजा तो, होटल म्हं फंस जावैं रै,

बेज्जती तै डरदे घरके भी, ब्होत घणे रूपए लावैं रै,

छोरा नअ् छुटवांव रै, ये किस्से रहगे अधूरे।

काॅलेज, कैंपस के दिनां म्हं, होज्या इसतराले पूरे।।


एक छोरी कहवै बेबे, छोरा यो तो ठीक सै,

चम्मनी तक लाव कोना, यो तो पूरा ठीठ सै,

कहया पाछै काम करै ना, काढ़दे तीन लिख सै,

कितै खड़ा हो तो काम बिगड़ज्या, मारदे यो छीक सै,

आंदी-जांदी नै छेडरै, लैके हाथा म्हं पिलुरै।

काॅलेज, कैंपस के दिनां म्हं, होज्यंा इसतराले पूरे।।



काॅलेज के दिनां म्हं, देखा यो भी चाला् रै,

छोरी-छोरी भिड़ती देखी, कती मांडरी पाला रै,

दोनंू कहवैं मेरा-मेरा, माहरा राम रूखाला रै,

संस्कृति का धूमा ठा दिया, होग्या जान का गाला रै,

कह् सन्दीप भुरटाणे आला रै, होग्ये मेरे पूरे।


काॅलेज, कैंपस के दिनां म्हं, होज्यंा इसतराले पूरे।।

एक दूसरी नै ये पूछें, तू किसा कअक छोरा चाहव सै,

तावली बतादे नै बेबे, क्यूं घणी बार लगाव सै,

सन्दीप सै वो तो, कसूता तो लखाव सै,

सबेरे पहलां मन्नै वो, करके फोन जगाव सै,

भरा होस्टल कै म्हं छोरी, बड़े-बड़े छोडै सुरे।

मस्त जवानी छोरां की, नशा म्हं छोरे खुरे।

काॅलेज ,कैंपस के दिनां म्हं, होज्यंा इसतराले पूरे।।



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