Thursday, August 11, 2011

घरां रोटी ना पाई।

Sandeep Kanwal



आज मन्नै माहरै घरां रोटी ना पाई।
गाम का छोरा कुहवाण म्हं मन्नै शर्म आई।।
रोटियां का कै कहणा भाई, लासी नै नाटजा,
बात-बात पै होवंे रौले, झाल नै तु रै डाटजा,
इन रौले झगड़ा म्हं भाई का सिर फोडै़ भाई।
गाम का छोरा कुहवाण म्हं मन्नै शर्म आई।।
पहलां काम नै लोग बांट-बांट करा रै करते,
नाज के कुठले भी वै भरा रै करते,
घरां नाज की टंकी भी मन्नै खाली पाई।
गाम का छोरा कूवांण म्हं मन्नै शर्म आई।।
म्हारे गाम के लोगां नै यो काल खाग्या,
ताउ भरथु भी सारी अपणी जमीन डिगाग्या,
हाडैं थेपड़ी पाथदी वा माहरी ताई।
गाम का छोरा कूवांण म्हं मन्नै शर्म आई।।
हामनै भी गामै एक अभियान चलाणा होगा,
एक-एक बालक ध्यान तै खूब पढ़ाणा होगा,
फेर जगमग भुरटाणा होगा, या ए प्लान बणाई।
आज मन्नै माहरै घरां रोटी ना पाई।
गाम का छोरा कूवांण म्हं मन्नै शर्म आई।।

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